भोजपुर मे शारीरिक शिक्षक के रिटायर्ड होने पर रो पड़ा विद्यालय, कहानी सुन आप भी हो जाएंगे भावुक...

भोजपुर मे शारीरिक शिक्षक के  रिटायर्ड होने पर रो पड़ा विद्यालय, कहानी सुन आप भी हो जाएंगे भावुक...

आरा : कोई कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से इतना ज्यादा प्रभावित कर देता है की उसके दूर होने की कल्पना से मन व्यथित हो जाता है। ये कहानी है एक शारीरिक शिक्षक की जो अपने सेवा काल में मिशाल बन गए। जहां सरकारी सेवकों को लेकर कई तरह की चर्चा होती है। वहीं अगर सेवा करने वाले का संबंध स्कूल से हो वो भी खेल कूद कराने वाले शारीरिक शिक्षक का तो लोग धारणा बना लेते हैं की ये क्या करेगा सिर्फ फांकीबाजी और वेतन लेने के सिवाय।

पर इस धारणा को गलत साबित करने वाले इस सरकारी सेवक शारीरिक शिक्षक का नाम है रामबाबू सिंह । सिंह एक सामान्य परिवार से आते हैं। पिता वक्त से पहले ही गुजर गए। घर का बोझ कच्ची उम्र में ही उठाना पड़ा। इस संघर्ष को रामबाबू सिंह ने अपना हथियार बना लिया। हर हाल में हंसते रहना सबके दुख सुख में शामिल होना। पर अपनी व्यथा कभी किसी से नहीं कहा। वक्त अपनी गति से बढ़ता रहा और रामबाबू ने अपनी जिम्मेवारियों के साथ खेल कूद में भी अपने बेहतर प्रदर्शन से लोगों का ध्यान खींचा।

एक अच्छे खिलाड़ी और मिलनसार व्यक्तित्व के रामबाबू एक मेडिकल स्टोर में सेवा देने लगे। खेलकूद और अन्य सामाजिक गतिविधि निरंतर जारी रही। इस बीच उनकी मुलाकात और बातचित के क्रम में बहुत कुरेदने पर यह जानकारी मिली की वो कैसे जीवन के संघर्ष को बार बार हरा देते हैं। खैर इस बातचित के क्रम में शारीरिक शिक्षक प्रशिक्षण करने का व्यक्ति ने आग्रह किया। नाम नहीं बताने की शर्त पर रामबाबू सिंह के शिक्षक प्रशिक्षण कैसे हुई ये पूरी कहानी बताते है।

प्रशिक्षण के बाद परिणाम आने के बाद भी अभी संघर्ष काम नहीं हुआ था। बहाली पर कोर्ट में केस को गया और अरमानों पर फिर गया पानी। लेकिन अचानक से समय का चक्र बदला और शिक्षक नियोजन का विज्ञापन निकल गया। उम्मीदें पूरी होती हुई दिखी पर अभी सफलता मिलों दूर थी। उस शख़्स ने घूम घूम कर अलग अलग जिलों में फॉर्म भरवाने में अहम भूमिका निभाया! कांसिलिंग हुई और रामबाबू सिंह का फिजिकल टीचर के रूप में नियोजन हो गया। अभी कुछ वर्ष ही नियोजन के हुए थे की कोर्ट का फैसला आया जिसने फिर से सबकुछ बदल दिया।

रामबाबू सिंह भी उन 34540 शिक्षकों में थे जिन्हें सरकारी शिक्षक के लिए पात्रता मिली। अब रामबाबू सिंह सरकारी शिक्षक थे। अपने 14 - 15 वर्षों के सेवा काल में सैकड़ों खिलाड़ी और हजारों बच्चो के जीवन शैली को बदलने वाले रामबाबू ने मिशाल कायम किया। 31 अक्टूबर 2023 को रामबाबू सिंह सेवा से निवृत हो गए।

पर कहानी अभी बाकी थी लक्षणपुर में 12 साल सेवा देने वाले रामबाबू के लिए करीब दस से ज्यादा स्कूल के शिक्षक पदाधिकारी और बच्चे उनके फेयरवेल में पहुंचे। बच्चों ने अपने गुरु जी को विदाई तो दिया पर आंखों में आसूं और सवाल था क्या गुरु जी कल से नहीं आयेंगे। बहुत समझाने और बार बार ये वादा करने के बाद की जब भी उनके शिष्य याद करेंगे वो हाजिर हो जाएंगे। 

कई सहकर्मियों ने अपने संस्मरण बताए। रामबाबू कोई भी ऐसा दिन नहीं जब नागा किए हों। स्कूल को सुसज्जित रखना हो अनुशासन हो या किसी भी प्रकार की समस्या समाधान रामबाबू सर के पास था। स्कूल के वर्तमान प्राचार्य ने बताया की जब वो विद्यालय में पहली बार अपनी सेवा देने आए तो बारिश हो रही थी। गेट से अंदर जाने के रास्ते पर पानी जमा था एक शख्स कुदाल लेकर आने जाने का रास्ता बना रहा था।

उसने घुटनों से ऊपर पैंट उठा रखा था पूरा पैर मिट्टी में snaa हुआ था। जब उन्होंने पूछा की प्राचार्य का कार्यालय कहां है। रास्ता बना रहे शख्स ने उंगली के इशारे से बताया वहां है सर कमरे में बैठा जाए। थोड़ी देर बाद जो रास्ता बना रहे थे वो प्राचार्य कक्ष में आए कुर्सी पर बैठते ही पानी का ग्लास आगे सरकाया। बोले पानी पीजिए सर दूर से आए होंगे उसके बाद बात करते है। वो शख्स कोई और नहीं रामबाबू सर थे। 

इस तरह से दो दर्जन से ज्यादा सहकर्मियों और अन्य स्कूलों से पहुंचे शिक्षकों ने अपने अपने संस्मरण बताए। इस अवसर पर रामबाबू के बचपन के मित्र और उनके पुराने साथी भी उपस्थित थे। आज भी रामबाबू सिंह रिटायर्ड नहीं हुई कई खेल कमिटी से जुड़े हैं। ऐसे व्यक्तित्व के लोग ही इतिहास लिखते हैं।