बीजेपी में नीतीश के लिए जगह नहीं ,हमेशा के लिया दरवाजा बंद है ---सुशील मोदी .. क्या है रणनीति ?
NBL PATNA : पूर्व उपमुख्यमंत्री और सांसद सुशील कुमार मोदी इन दिनों महागठबंधन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर खूब हमलावर हैं। सियासी बयानों से सत्ता पक्ष पर तंज कसने को वह कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। सोमवार को एक निजी चैनल से बातचीत के क्रम में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक बार फिर कटघरे में खड़ा किया और कहा कि नीतीश के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। अगर वो नाक भी रगड़ लें तो इस जन्म में कुछ नहीं होने वाला। राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचाने वाला सुशील मोदी का यह बयान तब सार्वजनिक रूप से आया है जब जन सुराज अभियान के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जदयू में होने वाली टूट की बात कुछ दिनों पूर्व की थी और कहा था कि जदयू के एक बड़े नेता के जरिए नीतीश कुमार भाजपा के संपर्क में है ।
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि वो एक नहीं बल्कि दो बार भाजपा को धोखा दे चुके हैं। अब भाजपा और धोखा नहीं खाना चाहती। बताते चलें कि प्रशांत किशोर ने हाल में कहा था कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के माध्यम से नीतीश कुमार फिर से भाजपा के संपर्क में हैं। हरिवंश जदयू के कोटे से ही राज्यसभा के सांसद हैं। इस मामले पर प्रशांत किशोर ने बीते साल ट्वीट भी किया था और लिखा था कि नीतीश कुमार जी अगर भाजपा और एनडीए से आपका कुछ भी लेना देना नहीं है तो अपने सांसद से राज्यसभा के उपसभापति का पद छोड़ने के लिए कहें।
बहरहाल सुशील कुमार मोदी ने प्रशांत किशोर की अटकलों पर विराम लगा दिया है। इससे पहले सुशील मोदी ने नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम पर तंज कसते हुए कहा था कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी में जो विद्रोह हुआ है, उसकी वजह विपक्षी एकता है और ऐसा बिहार में भी हो सकता है। मोदी ने कहा है कि बिहार में भी महाराष्ट्र- जैसी स्थिति बन सकती है। इसे भांप कर नीतीश कुमार ने विधायकों से अलग- अलग बात करना शुरू कर दिया है। जदयू के विधायक- सांसद न राहुल गांधी को स्वीकार करेंगे और न ही तेजस्वी प्रसाद यादव को ऐसे में पार्टी में भगदड़ की आशंका है।
उन्होंने कहा कि जदयू पर वजूद बचाने का ऐसा संकट पहले कभी नहीं था, इसलिए नीतीश कुमार ने 13 साल में कभी विधायकों को नहीं पूछा। आज वह हर एक से अलग- अलग मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जदयू यदि महागठबंधन में रहा तो टिकट बंटवारे में उसके हिस्से की लोकसभा की 10 से ज्यादा सीट नहीं आएगी और कई सांसदों पर बेटिकट होने की तलवार लटकती रहेगी। यह भी विद्रोह का कारण बन सकता है।