बीपीएससी और के . के पाठक के बीच हुआ जंग जारी ,झुकने को तैयार नहीं .. क्या है रणनीति ?

बीपीएससी और के . के पाठक के बीच हुआ जंग जारी ,झुकने को तैयार नहीं .. क्या है रणनीति ?
बीपीएससी और के . के पाठक के बीच हुआ जंग जारी ,झुकने को तैयार नहीं .. क्या है रणनीति ?

NBL PATNA : शिक्षा विभाग और बीपीएससी के बीच तलवारें खिंची हुई हैं. बीपीएससी ने शिक्षा विभाग को चेतावनी भरा जवाब दिया. इसके बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने बीपीएससी को कड़ी नसीहत दे दी है। साथ ही बीपीएससी से कई सवाल भी पूछे हैं। इतना ही नहीं आयोग की स्वायत्ता पर भी सवाल खड़े किए हैं। केके पाठक ने आयोग से कहा है कि स्वायत्ता के नाम पर आप अराजकता नहीं कर सकते. पाठक के आदेश पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने बीपीएससी द्वारा भेजे गए पत्र को वापस करते हुए बचकानी हरकत से बाज आने को कहा है.

माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव ने BPSC को 8 सितंबर को ही पत्र वापस कर दिया है. साथ ही आयोग से कई सवाल पूछे हैं. इतना ही नहीं आगाह किया है कि अगर शिक्षक बहाली में आयोग को स्थापित परंपराओं से हटकर कोई कार्य करना है तो पहले एक औपचारिक बैठक आयोग के स्तर पर की जानी चाहिए थी. इसमें शिक्षा विभाग, विधि विभाग तथा सामान्य प्रशासन विभाग से भी चर्चा की जानी चाहिए. आयोग की स्वायत्तता का अर्थ यह नहीं है कि आयोग कोई भी मूर्खतापूर्ण एवं अविवेक पूर्ण परंपरा स्थापित करें, जिससे शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकार के सामने वैधानिक अड़चन आए .साथ ही आयोग यह भी स्पष्ट करे कि लिखित परीक्षा का परिणाम निकले बगैर प्रमाण पत्रों का सत्यापन पहले से किन-किन मामलों में किया गया है?  आयोग अपनी स्वायत्तता के नाम पर अविवेक एवं मूर्खतापूर्ण निर्णय नहीं ले सकता है. साथ ही स्थापित परंपराओं से इतर नहीं जा सकता है. शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में प्रशासनिक विभाग शिक्षा विभाग है.संबंधित नियमावली में कई जगह लिखा है की परीक्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रशासी विभाग से चर्चा कर ही कार्य किया जाए. मुख्य सचिव ने 6 सितंबर को पूरी स्थिति स्पष्ट कर दी थी .फिर से आपके द्वारा यह पत्र भेजना अनावश्यक है एवं बचकानी हरकत है .ऐसे में यह पत्र आपको लौटाया जाता है.

KK पाठक के आदेश पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने बीपीएससी को काफी तल्ख जवाब दिया है. पत्र में काफी तल्ख शब्दों का प्रयोग किया है. आयोग के पत्र को लौटते हुए केके पाठक ने कहा है कि शिक्षक नियमावली में प्रावधानों का अनुपालन जरूरी है. ताकि ससमय नियुक्ति की प्रक्रिया पूर्ण हो सके. आपने अनावश्यक रूप से अनर्गल शब्दों का प्रयोग करते हुए पत्राचार में जो ऊर्जा व्यय किया है वह अनुचित है. केके पाठक ने आगे लिखा है कि अनर्गल एवं अनुचित शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए अनावश्यक पत्राचार करने की बजाय नियमावली में विहित प्रावधानों के आलोक में ससमय कार्रवाई सुनिश्चित करें. ताकि नियुक्ति प्रक्रिया को कोर्ट केसों के बोझ से बचाया जा सके . केके पाठक के आदेश पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने आगे लिखा है की बीपीएससी के पत्र में लिखा गया है कि बिहार लोक सेवा आयोग शिक्षा विभाग या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन नहीं है. शिक्षा विभाग आपको यह स्पष्ट करना चाहता है कि स्वायत्ता का अर्थ अराजकता नहीं है. आपको फिर से अगाह किया जा रहा है कि जहां तक शिक्षकों की भर्ती का प्रश्न है, आप स्थापित परंपराओं से हटकर कोई कार्य नहीं कर सकते. ऐसा करते हैं तो इसके पहले आयोग के स्तर पर बैठक होनी चाहिए थी.

बिहार लोक सेवा आयोग और शिक्षा विभाग में जंग छिड़ गई है. शिक्षा विभाग के पत्र के बाद बीपीएससी ने चेताते हुए कहा है कि आयोग आपके अधीन नहीं है. आगे से इस तरह का पत्र लिखने की धृष्टता न करें. बीपीएससी के सचिव ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक के पत्र में उन्हें यह जवाब दिया है. बिहार लोक सेवा आयोग के सचिव रविभूषण ने 6 सितंबर को ही माध्यमिक शिक्षा निदेशक को जवाब दिया था.  जवाबी पत्र में कहा गया है कि आपके पत्र के जवाब में यह कहना है कि प्रमाणपत्रों का सत्यापन पूर्व प्रचलित व्यवस्था के अनुरूप दो स्तरों पर किया जाता रहा है. पहले आयोग के स्तर से जो परीक्षा फल के अंतिम प्रकाशन के पूर्व किया जाता है और दूसरा विभाग के स्तर से जो सफल अभ्यर्थियों के नियोजन के समय किया जाता रहा है। दोनों काअपना-अपना औचित्य है. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। बिना अपने स्तर से सत्यापन कार्य के आयोग न ही कोई अनुशंसा भेजी जा सकती है और न ही कोई डोसियर. आयोग के इस सत्यापन कार्य में राज्य सरकारहमेशा सहयोग करती रही है. इसके लिए किस विभाग के किस पदाधिकारी / कर्मी को प्रतिनियुक्त किया जाए यह राज्य सरकार का विषय है। इस सम्बन्ध में कोई आपति / अनुरोध राज्य सरकार से किया जाना चाहिए ।

आयोग के पत्र में आगे कहा गया है कि स्पष्ट रहे कि सत्यापन का यह कार्य आयोग की आतंरिक प्रक्रिया का मामला है .यह आयोग शिक्षा विभाग या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन नहीं है। यह स्पष्ट न हो तो संविधान के सुसंगत अनुच्छेदों का अध्ययन कर लें. यह भी स्पष्ट रहे कि आयोग के आंतरिक प्रक्रिया के औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाना या इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप करना और इस प्रकार आयोग पर दबाव डालने का प्रयास करना असंवैधानिक अनुचित और अस्वीकार्य है। आश्चर्य है कि विभाग इन सब प्रावधानों को जानते हुए भी बिना प्रमाण पत्रों के सत्यापन के ही आयोग से अनुशंसा की अपेक्षा कर रहा है.  बीपीएससी ने शिक्षा विभाग को चेताते हुए कहा है कि भविष्य में इस तरह के पत्राचार की धृष्टता न करें. 

बता दें, शिक्षक अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्र सत्यापन कार्य में शिक्षकों व शिक्षा विभाग के कर्मियों को लगाने पर शिक्षा विभाग ने गहरी नाराजगी जताई थी. मा. शिक्षा निदेशक ने बीपीएससी के सचिव को पत्र लिखकर सर्टिफिकेट वेरिफिकेशन को ही औचित्यहीन करार दिया था. साथ ही शिक्षा विभाग के कर्मियों को इस कार्य से हटाने को कहा था. इसी के बाद विवाद बढ़ गया.