बिहार में सीबीआई पर लग सकती है रोक --क्या नीतीश लेंगे निर्णय ?क्या है सियासी सरगर्मी ?
NBL PATNA : केंद्र की मोदी सरकार पर सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरूपयोग का आरोप लगा रहे विपक्षी दलों ने अब सीबीआई पर नकेल कसने की योजना बना ली है. इसी क्रम में तमिलनाडु ने अब एक बड़ा कदम उठाया है. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को तमिलनाडु में जांच के लिए अब राज्य सरकार की सहमति लेनी होगी. अब तक के नियम के तहत सीबीआई बिना राज्य सरकर की अनुमति के तमिलनाडु में जांच कर सकती थी. लेकिन तमिलनाडु के बिजली मंत्री और डीएमके नेता वी सेंथिल बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के कुछ घंटों बाद ही तमिलनाडु सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है. अब सीबीआई को तमिलनाडु में किसी प्रकार की जांच के पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी. इस तरह तमिलनाडु भी अब भारत के उन नौ अन्य राज्यों में शामिल हो गया है जहाँ सीबीआई को बिना राज्य सरकार की अनुमति के जांच का अधिकार नहीं है.
दरअसल, सीबीआई को राज्यों में बैन करने की शुरुआत केंद्र में वर्ष 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद शुरू हुई. 2014 में देश में नरेंद्र मोदी जी की सरकार बनने के बाद विपक्षी दलों ने सीबीआई का दुरुपयोग का आरोप लगाना शुरू किया. वहीं वर्ष 2015 में मिजोरम की तत्कालीन सरकार देश में ऐसी पहली राज्य सरकार थी जिसने अपने राज्य में सीबीआई की जांच की सहमति वापस ली. उसके बाद से अब तक नौ राज्यों ने अपनी सहमति वापस ले ली है. इसमें पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल, मिजोरम, पंजाब, तेलंगाना, छतीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं. अब इसी क्रम में तमिलनाडु भी शामिल हो गया है.
सीबीआई को राज्य में जांच करने की 'आम सहमति (जनरल कंसेंट)' वापस लेने के पीछे ज्यादातर राज्यों का तर्क है कि केंद्र सरकार सीबीआई का दुरूपयोग कर रही है. एनडीए से अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश की चन्द्रबाबू नायडू सरकार ने 8 नवंबर, 2018 को सीबीआई को राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया. उसी वर्ष नवंबर महीने में ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी यही काम किया. आंध्र प्रदेश के निर्णय के हफ्ते भर के अंदर उन्होंने प. बंगाल में सीबीआई को जांच करने की दी गई सहमति वापस ले ली. छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने 10 जनवरी, 2019 को आंध्र प्रदेश और प. बंगाल के नक्शे कदम पर चलते हुए सीबीआई को राज्य में जांच के लिए दिया गया जनरल कंसेंट वापस ले लिया. वहीं राज्यस्थान ने भी जुलाई 2020 में सीबीआई को मिला जनरल कंसेंट वापस ले लिया यानी सीबीआई की एंट्री बैन हो गई.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मोदी सरकार के खिलाफ मुखर हैं. वे इसी महीने 23 जून को विपक्षी दलों की पटना में बैठक बुला रहे हैं. वहीं बिहार में भी लालू यादव और उनके परिजनों तथा निकटवर्ती लोगों के खिलाफ अक्सर सीबीआई-ईडी जैसी एजेंसियों की छापेमारी होती रही है. राजद नेताओं की ओर से भी बिहार में सीबीआई की एंट्री बैन करने की मांग की जा रही है. मार्च 2023 में ही जब रेलवे में नौकरी के बदले जमीन घोटाले में लालू यादव की बेटी के यहां सीबीआई की छापेमारी हुई तब राजद ने जोरशोर से सीबीआई की एंट्री बैन करने की मांग उठाई थी. राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने विधानसभा में शून्य काल के दौरान मांग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से 'आम सहमति (जनरल कंसेंट)' वापस लेने की मांग की.
राजद नेता शिवानंद तिवारी ने भी सीबीआई के दुरूपयोग का मामला उठाया था. वहीं बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ राजद नेता उदय नारायण चौधरी ने कहा था कि सीबीआई और ईडी की विश्वसनीयता पूरे देश में समाप्त होती जा रही है. इनका दुरूपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में किया जा रहा है. इसलिए बिहार में सीबीआई की एंट्री पर नीतीश कुमार को बैन लगाना चाहिए. हालांकि नीतीश कुमार या जदयू की ओर से राजद की इस मांग पर गंभीरता नहीं दिखाई गई. ऐसे में अब तमिलनाडु में सीबीआई की जांच के लिए जनरल कंसेंट वापस लेने के निर्णय के बाद बिहार में फिर से यह मांग राजद की ओर से उठाई जा रही है. ऐसे में नीतीश कुमार अब क्या निर्णय लेते हैं यह बेहद अहम होगा.