विपक्ष को एकजुट करना बेहद मुश्किल --क्या काँग्रेस मान जाएंगे शर्त .. काँग्रेस को होगा बड़ा नुकसान ----जानिए पूरी रणनीति ?

विपक्ष को एकजुट करना बेहद मुश्किल --क्या काँग्रेस मान जाएंगे शर्त .. काँग्रेस को होगा बड़ा नुकसान ----जानिए पूरी रणनीति ?
विपक्ष को एकजुट करना बेहद मुश्किल --क्या काँग्रेस मान जाएंगे शर्त .. काँग्रेस को होगा बड़ा नुकसान ----जानिए पूरी रणनीति ?

NBL PATNA : आगामी 23 जून को पटना में होनेवाले विपक्षी दलों की बैठक की चर्चा पूरे देश में है। बैठक में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए 17 पार्टियां एक साथ आने को तैयार हो गई हैं। जाए। बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पहल पर 17 विपक्षी दलों के नेता साथ बैठने को तैयार हुए हैं। खास बात यह है कि बैठक में उन दलों ने भी शामिल होने की हामी भरी है, जिनकी कांग्रेस से पटती नहीं है। वहीं इस बैठक का जो मुख्य एजेंडा है, वह भी खुल कर सामने आ गया है और यही एजेंडा विपक्षी एकता की सबसे बड़ी बाधा बन सकती है।

बैठक का जो मुख्य एजेंडा सामने आया है, उसके अनुसार सभी पार्टियों के बीच इस बात को लेकर सहमति बनाने को है, जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत है, वहां कोई दूसरी विपक्षी पार्टी भाजपा के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। उदाहरण के लिए बंगाल में टीएमसी मजबूत है तो वहां कांग्रेस का कोई उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं होगा। यही स्थिति दूसरे राज्यों में भी लागू होगी। कोई भी क्षेत्रीय पार्टी अपने राज्य में बादशाहत छोड़ने को तैयार नहीं है।

दरअसल, यह विपक्षी एकता के लिए ममता बनर्जी ने यह शर्त रखी है, इशारों-इशारों में अब सभी वही शर्त कांग्रेस के सामने रख रहे हैं। अगर कांग्रेस इन शर्तों को मानती है तो उसे काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। यूं कहें कि सत्ता पाने के लिए उसे दूसरी पार्टियों पर निर्भर होना पड़ेगा।

बंगाल, यूपी, बिहार, दिल्ली और केरल में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल होगी, जहां लोकसभा की 189 सीटें हैं। बंगाल में लोकसभा की 42, उत्तर प्रदेश में 80, बिहार में 40, दिल्ली में 7 और केरल में 20 सीटें हैं। अभी स्थिति यह है कि इन राज्यों में कांग्रेस बिल्कुल खात्मे के कगार पर है। अगर ममता बनर्जी की शर्त कांग्रेस मानती है तो उसका मतलब यही है कि कांग्रेस उन राज्यों में वहां के शक्तिशाली दलों की मर्जी और कृपा से कुछ ही सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा। जो शायद देश की सबसे पुरानी पार्टी को नागवार होगा।

ममता बनर्जी ने जो शर्त विपक्षी एकता के लिए रखी है, वह केजरीवाल को भी शायद ही पसंद आए। फिलहाल, आप की दिल्ली और पंजाब में सरकार है, जाहिर है कि वहां पार्टी बेहद मजबूत है, लेकिन आप सिर्फ इन्हीं दो राज्यों तक खुद की सीमित नहीं रखना चाहेगी। हाल में ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के बाद अब केजरीवाल की नजर देश के दूसरे राज्यों में भी अपनी पार्टी का विस्तार करने पर है। ऐसे में वह चाहेगी कि न सिर्फ बंगाल, बल्कि यूपी, बिहार और दूसरे बड़े राज्यों में भी अपने कैंडिडेट उतारे।

विपक्षी एकता की बात तो हो रही है, पर कई दल इसमें शामिल नहीं हैं। तेलंगाना के सीएम और बीआरएस नेता केसी राव ने शुरू में विपक्षी एकता की कोशिश की थी, लेकिन बाद में वे अलग-थलग पड़ गए। अब तो उन्होंने विपक्षी एकता की मुहिम से दूरी ही बना ली है। और तो और, बिहार में महागठबंधन का घटक दल हम (HAM) को न्यौता तक नहीं भेजा गया है। चंद्रबाबू नायडू बीजेपी के संपर्क में हैं। 

पीएम का फेस भी अभी विपक्ष ने तय नहीं किया है। बीजेपी को हराने के लिए बेचैनी सभी विपक्षी दलों को है, लेकिन सभी अपने-अपने सूबे में अपनी बादशाहत बरकरार रखना चाहते हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपने शासन वाले चार राज्यों को छोड़ बाकी जगहों पर दूसरे दलों की चेरी बन कर रहना पड़ेगा।