बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटना आसान नहीं होगा --बीजेपी ने महागठबंधन को मात देने की कर ली तैयारी .. क्या है रणनीति ?

बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटना आसान नहीं होगा --बीजेपी ने महागठबंधन को मात देने की कर ली तैयारी .. क्या है रणनीति ?
बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हटना आसान नहीं होगा --बीजेपी ने महागठबंधन को मात देने की कर ली तैयारी .. क्या है रणनीति ?

बिहार में आगामी 23 जून को विपक्षी एकता की झलक देखने को मिलेगी, जब देश की 15 बड़ी पार्टियों के प्रमुख पटना में एक साथ नजर आएंगे। बैठक को लेकर राजद और जदयू के लोग बेहद उत्साहित हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगता है कि अगर हिन्दी वाले राज्यों से नरेंद्र मोदी की सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब हुए तो दिल्ली की सत्ता बदलनी तय है। वहीं नीतीश कुमार के प्लान की बीजेपी ने काट भी तैयार करनी शुरू कर दी है। हिन्दी बेल्ट वाले राज्यों से नुकसान की भरपाई दक्षिण के राज्यों से की जाएगी। जिसमें बड़ी भूमिका साउथ के तीन बड़े राजनीतिक चेहरे निभाने जा रहे हैं।

कर्नाटक में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी को दक्षिण में साथियों की तलाश है। वह अब दक्षिण में अपनी जमीन मजबूत करने की तैयारी में है। कांग्रेस से असेंबली इलेक्शन में मात खाए देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस को लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गए बिना अपना कल्याण नजर नहीं आता। इस बाबत पार्टी प्रमुख पूर्व पीएम देवेगौड़ा का कहना है- 'मैं राष्ट्रीय राजनीति का विश्लेषण कर सकता हूं, लेकिन इसका क्या फायदा है?' उन्होंने सवाल किया कि देश में कोई ऐसी पार्टी है, जो बीजेपी के साथ 'प्रत्यक्ष या परोक्ष' रूप से जुड़ी न रही हो ? देवगौड़ा का संकेत साफ है। वह बीजेपी में संभावना तलाश रहे अगर जेडीएस के साथ बीजेपी का गठबंधन हुआ तो वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय पर पकड़ मजबूत हो जाएगी। जो चुनाव में दोनों के लिए फायदेमंद होगा।

कुछ ही दिन पहले आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी। इससे यह संभावना प्रबल हो गई है कि टीडीपी अब बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा बनेगी। पहले भी चंद्रबाबू एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। साल 2018 में उन्होंने एनडीए छोड़ा था। तब नीतीश कुमार या दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह उन पर भी विपक्षी एकता की धुन सवार थी। विपक्षी एकता तो फ्लॉप ही हो गई थी, चंद्रबाबू की सीएम की कुर्सी भी वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी ने छीन ली थी। चंद्रबाबू नायडू का स्वार्थ सिर्फ आंध्रप्रदेश तक ही सीमित नहीं है। उन्हें तेलंगाना में भी अपनी स्थिति सुधारनी है। तेलंगाना में बीजेपी की पकड़ उतनी अच्छी नहीं है। उसके पास तो उम्मीदवारों का टोटा भी हो सकता है। इसलिए बीजेपी चंद्रबाबू नायडू को तेलंगाना में मजबूत बनाने का आश्वासन दे सकती है।

आंध्रप्रदेश में अभी वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगन मोहन रेड्डी सीएम हैं। केंद्र की बीजेपी सरकार से उनकी अच्छी ट्यूनिंग रही है। खासकर राज्यसभा में विधेयकों को पारित कराने में वाईएसआर कांग्रेस बीजेपी की मददगार बनती रही है। चंद्रबाबू नायडू अगर एनडीए फोल्डर में आना चाहते हैं तो बीजेपी के सामने दोनों को बैलेंस करने की समस्या होगी। उसे रेड्डी और नायडू में किसी एक को चुनना होगा या फिर दोनों के सहमति-समझौते से बीजेपी उन्हें जोड़ सकती है। आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी को भरोसे में लिए बगैर बीजेपी घातक कदम नहीं उठाएगी।