लालू नीतीश का दोस्ताना कुछ अलग है ---कभी सियासी दोस्ती तो कभी दुश्मनी .. कुछ राजनीति से हटकर भी है कहानी ---जाने क्या ?

लालू नीतीश का दोस्ताना कुछ अलग है ---कभी सियासी दोस्ती तो  कभी दुश्मनी .. कुछ राजनीति से हटकर  भी है कहानी ---जाने क्या ?
लालू नीतीश का दोस्ताना कुछ अलग है ---कभी सियासी दोस्ती तो  कभी दुश्मनी .. कुछ राजनीति से हटकर  भी है कहानी ---जाने क्या ?

 11 जून 1948 को गोपालगंज में पैदा हुए लालू यादव बिहार की सियासत में वर्ष 1990 से केंद्र बिंदु बने हुए हैं. संयोग से बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत लालू यादव के साथ जेपी आंदोलन के दौरान ही किए. वहीं से दोनों की जान पहचान शुरू हुई जो बाद में सियासी दोस्ती में तब्दील हो गई. वहीं दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी भी जोरदार देखी गई. मुख्यमंत्री बनवाने के लिए जिस लालू यादव को नीतीश ने 1990 में समर्थन किय था बाद में उन्हें ही बिहार की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए नीतीश ने सबसे बड़ा राजनीतिक संघर्ष किया. 40 साल से ज्यादा की सियासी दोस्ती में ऐसे कई मौके आए जब लालू-नीतीश के बीच दोस्ती और दुश्मनी देखी गई. इन सबके बीच बिहार की सियासत पिछले 33 सालों से इन दोनों के बीच ही घूम रही है. 

लालू यादव ने मात्र 29 साल की उम्र में 1977 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव जीता और संसद सदस्य चुने गए. वहीं नीतीश कुमार को पहली राजनीतिक सफलता 1985 में मिली. वे सत्येंद्र नारायण सिन्हा की अध्यक्षता वाले जनता दल से जुड़े और इसी साल पार्टी के टिकट पर हरनौत से विधायक चुने गए. जनता दल में अपने शुरुआती वर्षों में नीतीश कुमार ने 1989 में बिहार विधानसभा में लालू प्रसाद यादव का नेता विपक्ष के तौर पर समर्थन किया था. मार्च 1990 में लालू प्रसाद यादव जब बिहार के पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तो उसमें नीतीश कुमार ने अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि दो साल बाद ही दोनों के बीच दूरियां बढने लगी. वहीं 1994 में नीतीश ने लालू के खिलाफ बगावत कर दी. लालू का साथ छोड़ नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था. दोनों के बीच दोस्ती और दुश्मनी का यह पहला चैप्टर था.

नीतीश का लालू के खिलाफ यह सियासी संघर्ष वर्ष 2005 में सफलता में तब्दील हुआ. नीतीश ने बिहार में लालू-राबड़ी की सत्ता को उखाड़ फेंकने में कामयाबी पाई. वे भाजपा के सहयोग से बिहार के मुख्यमंत्री बने. वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव में फिर से लालू की पार्टी राजद को करारी हार का सामना करना पड़ा और नीतीश सबसे बड़े नायक बने. लेकिन 2013 आते आते नीतीश का भाजपा से मोहभंग होने लगा. वे भाजपा से अलग होकर 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने दम पर मैदान में उतरे लेकिन जदयू को हार का सामना करना पड़ा. राजद को भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली.

इससे परेशान नीतीश ने फिर से लालू यादव से दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फिर से नीतीश और लालू साथ हो गए. चुनाव परिणाम भी लालू और नीतीश के पक्ष में गया. यह नीतीश-लालू के बीच रिश्तों के नएपन का नया चैप्टर था. लेकिन 2017 आते आते फिर से नीतीश का लालू से मोहभंग हो गया और वे फिर भाजपा के करीब चले गए. लालू से उनकी दोस्ती फिर से टूट गई. इससे 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी को फिर से अपेक्षित सफलता नहीं मिली. https://youtu.be/o4N6VPsoPpk

हालांकि सियासत ने फिर करवट ली. अगस्त 2022 में अचानक से नीतीश फिर से भाजपा से अलग हो गए. इस बार फिर लालू यादव का दरवाजा नीतीश के लिए खुला था. दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गई. नीतीश की पार्टी के विधायकों की संख्या कम होने बाद भी लालू ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया. नीतीश और लालू की दोस्ती का यह एक और चैप्टर है जिसमें दोनों दुश्मनी से दोस्ती में फिर से बंध गए. 

अब लालू यादव अपना 76वां जन्मदिन मना रहे हैं. लालू को बड़ा भाई कहने वाले नीतीश कुमार इस बार उनके जन्मदिन पर सबसे बड़े तोहफे के रूप में लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी दलों को एकजुट करने पर काम कर रहे हैं. भाजपा के कट्टर विरोधी लालू यादव के साथ नीतीश भी अब केंद्र से भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने में सियासी जोर आजमाइश में लगे हैं. दोनों की दोस्ती का यह नया चैप्टर अब अगले साल के लोकसभा चुनाव के पहले क्या नया रंग लाता है, यह सबसे महत्वपूर्ण होगा.