के. के पाठक पर आरोप लगाने के बाद ,शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की खुद हो गई फजीहत .. क्या है सियासी सरगर्मी ?
NBL PATNA :पीत पत्र लिखने-लिखवाने वाले शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की भद्द पिट गई है. विवादित बयान देने वाले चंद्रशेखर ने अपने पीएस के माध्यम से विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ पीत पत्र लिखा था. पीत पत्र का जो जवाब मिला, उससे शिक्षा मंत्री चंद्रशेखऱ ने अपनी फजीहत खुद करा ली. के. के पाठक ने जहां विभागीय मंत्री के PS को न सिर्फ शिक्षा विभाग में घुसने पर बैन कर दिया, बल्कि किसी तरह की चिट्ठी लेने पर भी रोक लगा दी है. कड़क आईएएस अफसर केके पाठक के प्रहार से चंद्रशेखऱ के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है. पूरी तरह से विभाग में ही घिरे शिक्षा मंत्री चंद्रशेखऱ ने आज राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से मुलाकात की. मुलाकात के बाद जब निकले तो केके पाठक पर बोलने से कतराते रहे.
शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से जब पूछा गया कि आपके पीएस को शिक्षा विभाग में जाने से रोक लगा दिया गया है. इस पर चंद्रशेखर अपने विभागीय सचिव केके पाठक पर सीधा आरोप लगाने से बचते दिखे. उन्होंने कहा कि..''विवाद कुछ नहीं है भैया. देख रहे हैं ना, मेरी बात सुन लीजिए, हमें बोले दीजिएगा कि नहीं? आप लोग चैनल के माध्यम से जो दिखा रहे हैं मैं उसी से वाकिफ हुआ हूं. मैं चीजों को देख रहा हूं .आपके आप्त सचिव को रोक दिया गया है. इस पर मंत्री ने कहा कि इसी मामले को देखेंगे ना, आप बताइए कि संविधान में कौन बड़ा है, सचिव या मंत्री ? हम चीजों को देख रहे हैं, समझ रहे हैं तो आप लोग इतना परेशान क्यों है, चीजों को देखेंगे समझेंगे उसके बाद ना बोलेंगे .चीजों को समझ रहे हैं, चीजों को समझेंगे तो बताएंगे. यह कहकर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखऱ निकल गए।
शिक्षा विभाग के निदेशक प्रशासन की तरफ से सचिव, राज्य परियोजना निदेशक,मध्याहन भोजन निदेशक के अलावे सभी निदेशकों को पीत पत्र के बदले में चिट्ठी लिखी गईहै. निदेशक सुबोध कुमार चौधरी ने पत्र में कहा है कि विभागीय मंत्री के आप्त सचिव(बाह्य) कृष्णा नंद यादव द्वारा प्रेषित पत्र/पीत पत्र या अन्य कोई भी पत्र रिसीव नहीं करना है. इस पर अपर मुख्य सचिव का आदेश है.
शिक्षा मंत्री और उऩके पीए को शाम होते-होते ऐसा करारा जवाब मिला जिसकी कल्पना भी नहीं किए होंगे. मंत्री के पीए को शिक्षा विभाग में प्रवेश पर रोक लगा दिया गया है. साथ ही अपरोक्ष तौर पर शिक्षा मंत्री को भी हिदायत दे दी गई है. विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक के आदेश पर निदेशक प्रशासन की तरफ से यह आदेश जारी किया गया है.शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के आदेश पर विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के पाठक को पीत पत्र लिखने वाले मंत्री के आप्त सचिव डॉ० कृष्णा नन्द यादव को करारा जवाब मिल गया है. सिर्फ जवाब ही नहीं मिला बल्कि विभाग में घुसने पर भी रोक लगा दी गई है. निदेशक प्रशासन सुबोध कुमारी चौधरी की तरफ से मंत्री के आप्त सचिव को पत्र भेजा गया है. पीत पत्र के बदले में भेजी गई चिट्ठी को हम हूबहू लिख रहे हैं...।
निदेशानुसार, पिछले एक सप्ताह में आपके द्वारा भाँति-भाँति के पीत-पत्रों विभाग और विभागीय पदाधिकारियों को भेजे गये हैं। इस संबंध में आपको आगाह किया गया था कि आप आप्त सचिव (बाह्य ) तौर पर हैं। अतः आपको नियमतः सरकारी अधिकारियों से सीधे पत्राचार नहीं करना चाहिए। किन्तु आपके लगातार जारी अनर्गल पीत- पत्रों और अविवेकपूर्ण बातों से यह पता चलता है कि आपको माननीय मंत्री के प्रकोष्ठ में अब कोई काम नहीं है.आप व्यर्थ के पत्र लिखकर विभाग के पदाधिकारियों का समय नष्ट कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि आपकी सेवाएँ लौटाने के लिए सक्षम प्राधिकार को विभाग पहले ही लिख चुका हैं। विभाग द्वारा यह भी निदेशित किया गया है कि अब आप शिक्षा विभाग के कार्यालय में भौतिक रूप से प्रवेश नहीं कर सकते हैं। विभाग को यह पता चला है कि आप विभाग पर मुकदमा कर चुके हैं, जिसके कारण आपकी सेवा सामंजन का प्रस्ताव विभाग द्वारा काफी समय से लगातार खारिज किया जाता रहा है। अतः आप स्वयं एक माननीय विभागीय मंत्री के प्रकोष्ठ में काम करने के लायक नहीं हैं। इन्हीं कारणों से सक्षम प्राधिकार को आपको हटाने के लिए पत्र लिखा जा चुका है। आपसे अनुरोध है कि आप स्वयं या अपने संरक्षकों (जिनके कहने पर ये तथाकथित पीत–पत्र लिख रहे हैं) पूरी प्रक्रियाओं से अवगत हो लें और उसके बाद ही किसी प्रकार का पत्राचार करें। व्यर्थ का पत्राचार करने से आपका और आपके संरक्षकों की कुत्सित मानसिकता एवं अकर्मण्यता जाहिर होती है। विभागीय पदाधिकारियों के लिए संभव नहीं है कि वे आपके हर प्रकार के पत्रों का बार-बार उत्तर देते रहें।
शिक्षा मंत्री के पीए को दिए जवाब में आगे कहा गया है कि विभाग में यह भी निदेश निर्गत कर दिया गया है कि आपके द्वारा लिखे गये पत्र/ पीत-पत्र तुरंत लौटा दिये जाएं।आपको पुनः आगाह किया जाता है कि आप व्यर्थ का पत्राचार न करें और अपने नाम के आगे जो डॉ० लगाते हैं, उसका सबूत दें कि क्या आप वाकई किसी उच्च शिक्षण संस्थान में प्राध्यापक रह चुके हैं ?