जातीय जनगणना को लेकर नीतीश सरकार ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा ..

जातीय जनगणना को लेकर नीतीश सरकार ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा ..

NBL News Desk: बिहार मे जातीय जनगणना पर हाई कोर्ट की रोक लग चुकी है लेकिन नीतीश सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. मालूम हो कि हाल ही में पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित जनगणना पर रोक लगा दी थी. मालूम हो कि बिहार की तमाम पार्टियां लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे. बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना की तरफ कदम बढ़ दिए थे, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को करारा झटका देते हुए इस पर रोक लगा दी थी. जाति के आधार पर जनगणना को चुनौती देने के लिए लगाई गई याचिकाओं पर मई के पहले हफ्ते में ही सुनवाई पूरी हुई थी.

मामले पर सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता पीके शाही ने हाईकोर्ट के बताया था कि दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से जाति के आधार पर जनगणना कराने का फैसला लिया था. उन्होंने बताया था कि यह राज्य का नीतिगत निर्णय था और इसके लिए बजटीय प्रावधान भी किया गया. महाधिवक्ता पीके शाही ने संविधान के अनुच्छेद 37 का भी हवाला दिया था. इस अनुच्छेद में कहा गया था कि राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के संबंध में डाटा एकत्र करे. ताकि उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकें और उनका लाभ समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचाया जा सके.

उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार की नीयत साफ है. उन्होंने कहा, लोगों को उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से लाभ पहुंचाने के लिए यह डाटा इकट्ठा करने की कवायद शुरू की गई है. यही नहीं महाधिवक्ता ने यह भी बताया कि जातीय गणना का पहला चरण खत्म हो चुका है. दूसरे चरण का भी 80 फीसद काम कर लिया गया है. कुछ गिने-चुने लोगों के अलावा किसी को भी जातीय गणना से शिकायत नहीं है, इसलिए इस रोक नहीं लगाई जानी चाहिए. जातिगत गणना के खिलाफ याचिका दायर करने वाले व्यक्ति के वकील अभिनव श्रीवास्तव ने कहा कि राज्य सरकार को इस तरह से जाति के आधार पर गणना करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर लोगों का डाटा इकट्ठा कर रही है. उन्होंने इस तरह से डाटा इकट्ठा करने को नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन करार दिया था. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिना किसी बजटीय प्रावधान के राज्य सरकार जातिगत जनगणना करवा रही है, जो असंवैधानिक है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि अगर राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार है तो फिर उन्होंने कानून क्यों नहीं बनाया? उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए मांग की थी कि जाति आधारित गणना पर तुरंत रोक लगाई जाए.