नई शिक्षक नियमावली का विरोध CM नीतीश कुमार तक पहुंचा:भाकपा माले ने नियमावली की 5 दिक्कतें गिनायीं, साथ ही 5 उपाय भी सुझाए...

नई शिक्षक नियमावली का विरोध CM नीतीश कुमार तक पहुंचा:भाकपा माले ने नियमावली की 5 दिक्कतें गिनायीं, साथ ही 5 उपाय भी सुझाए...

पटना : बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक नियमावली-2023 का व्यापक विरोध नियोजित शिक्षक और शिक्षक अभ्यर्थी कर रहे हैं। इनके विरोध का स्वर अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंच गया है। उनसे मांग की गई है कि बिहार के लाखों नियोजित शिक्षकों के साथ न्याय करते हुए बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक नियमावली 2023 में संशोधन कर उन्हें बिना शर्त समायोजित किया जाए ताकि इनके अंदर उपजी कुंठा और असंतोष खत्म हो सके।

15 अप्रैल को शिक्षक संघर्ष मोर्चा बना था...

बता दें कि भाकपा माले के विधायक संदीप सौरभ ने 15 अप्रैल को शिक्षक संघों और अभ्यर्थियों के साथ अपने पटना आवास पर मीटिंग की थी। बैठक में बिहार शिक्षक संघर्ष मोर्चा बनाया गया जिसके संयोजक संदीप सौरभ बनाए गए। संदीप सौरभ के नेतृत्व में भाकपा माले का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से रविवार को मिला और शिक्षकों सहित अभ्यर्थियों के विरोध से उन्हें अवगत कराया। उनके साथ फुलवारीशरीफ के माले विधायक गोपाल रविदास भी थे। मुख्यमंत्री तक बात पहुंचाने के बाद संदीप सौरभ ने बताया कि मुख्यमंत्री को विस्तार से ज्ञापन भी सौंपा गया है। मुख्यमंत्री ने इस पर विचार करने का आश्वासन भी दिया है।

मुख्यमंत्री को बताई गईं 5 दिक्कतें...

1.नियोजित शिक्षकों के लिए आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण करने की शर्त से यह संदेश दिया जा रहा है कि ये शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के योग्य नहीं थे। यह न केवल दो दशकों से कार्यरत शिक्षकों के लिए अपमानजनक है बल्कि सरकार पर भी सवाल उठाने वाला है कि क्या बिहार सरकार पिछले दो दशकों से अयोग्य शिक्षकों से शिक्षण कार्य करवा रही थी? क्या सरकार इसी गुणवत्ताहीन शिक्षा के लिए साइकिल और पोशाक आदि योजनाओं पर अरबों रुपए खर्च कर रही थी?

2. जो शिक्षक पिछले दो दशकों से, पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं या जो शिक्षक किसी कक्षा विशेष को किसी खास विषय (जिसका सिलेबस तय होता है) पढ़ा रहे हैं उनसे आयोग की परीक्षा में बैठने को कहना उनके लिए ज्यादती है। अगर वे अपने विषय और कक्षाओं के पाठ्यक्रमों को पढ़ाने में दक्ष भी हैं तब भी इसकी काफी संभावना है कि वे आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सकें। ऐसे में ये अपमानित महसूस करेंगे।

3. आयोग की परीक्षा में जो शिक्षक असफल होंगे वे गुणवत्ताहीन शिक्षक कहे और समझे जाएंगे। तब भी वे विद्यालयों में अध्यापन कार्य करेंगे। क्या सरकार इन कथित रूप से गुणवत्ताहीन शिक्षकों से बच्चों को पढ़ावाएगी।

4. अभी बिहार के विद्यालयों में तीन तरह के शिक्षक हैं। नियोजित / STET/ CTET शिक्षक। स्थायी शिक्षक और अतिथि शिक्षक। आयोग द्वारा योग्यता परीक्षा आयोजित करवाने के बाद इसमें कई श्रेणियां और निर्मित होंगी। जैसे योग्यता परीक्षा में उत्तीर्ण शिक्षक -जिनका वेतनमान पूर्व के स्थायी शिक्षकों के कम होगा, योग्यता परीक्षा में असफल शिक्षक- वैसे शिक्षक जो योग्यता परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए और नवनियुक्त राज्यकर्मी शिक्षक। इस तरह से जब शिक्षकों की कई श्रेणियां हो जाएंगीं तो विद्यालय में लोकतंत्र और शैक्षणिक कार्य को प्रभावित करेंगी। साथ ही बिहार में शिक्षकों के लिए अलग-अलग नियमावली के कारण विभागीय नियंत्रण और सुचारू प्रक्रियाओं के संचालन में भी काफी कठिनाइयां उतपन्न होंगी।

5. शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा देने की मांग महागठबंधन सरकार के घोषणा-पत्र में शामिल रहा है। अब इसमें आयोग की परीक्षा उत्तीर्णता की शर्त के कारण नियोजित शिक्षकों के मन में सरकार और विभाग के प्रति तीव्र आक्रोश होगा और उनके निरंतर संघर्ष से शैक्षणिक माहौल पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

मुख्यमंत्री को दिए गए 5 सुझाव...

1. दिल्ली और केरल सरकार की तर्ज पर बिहार सरकार भी SCERT तथा बिहार शिक्षा परियोजना के जरिए लगातार स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम लाकर शिक्षकों को समय के अनुकूल प्रशिक्षित और दक्ष बना सकती है।

2. अपने निवास स्थान से काफी दूरी पर कार्यरत सभी शिक्षकों खास कर महिला शिक्षिकाओं का अविलंब स्थानांतरण किया जाए ताकि अपने घर से नजदीक के स्कूल में वे पूरे मनोयोग के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी कर सकें।

3. शिक्षकों को सभी तरह के गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त रखा जाए।

4. स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर सरकार का फोकस तो है लेकिन अभी भी इसमें कई कमियां हैं। इसे तत्काल दूर किया जाना चाहिए।

5.शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों की कार्य प्रणाली को दुरुस्त करते हुए विद्यालयों के लगातार उपचारात्मक निरीक्षण प्रणाली को ठीक किया जाना चाहिए।