औरंगाबाद का इतिहास बदलने की तैयारी, लालू ने लगाया थर्मामीटर!

इतिहास के पन्नों पर साफ लिखा हैं 1950 से लेकर 1989 तक लगातार यहाँ की जनता ने पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र

औरंगाबाद का इतिहास बदलने की तैयारी, लालू ने लगाया थर्मामीटर!

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PATNA पटना, बिहार, झारखंड की सीमा पर स्थित औरंगाबाद लोकसभा के भाग्य  क फैसला 2024 के महाभारत की शुरुआत में पहले चरण में होना हैं। बिहार का चितौड़गढ़ कहे जाने वाले इस लोकसभा क्षेत्र की एक अलग पहचान हैं। इतिहास के पन्नों को खंघालें तो 1996 को छोड़ औरंगाबाद की सीट पर दो परिवार का कब्जा रहा हैं। अब दशकों बाद इतिहास बदलने की तैयारी शुरू हो गई हैं. 

इतिहास के पन्नों पर साफ लिखा हैं 1950 से लेकर 1989 तक लगातार यहाँ की जनता ने पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह को सांसद बनाया। इस परिवार का लगातार यहां की जनता में भरोसा रहा हैं। शायद यही कारण हैं की सत्येंद्र बाबू की बहु श्यामा सिंह व पुत्र निखिल कुमार को भी लोगों ने सांसद बनाया। वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह भी औरंगाबाद से चार बार जीते और उनके पिता भी दो बार सांसद रहे.
इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा के सुशील कुमार सिंह व राजद के अभय कुशवाहा के बीच होना हैं.

औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र की कुल 15,89572 मतदाता 2024 में होना सांसद चुनने के लिए 15 अप्रैल 2024 को अपने माताधिकार का प्रयोग करेगी. कुल मतदाताओं में यहाँ पुरुष मतदाता 8,46202 और महिला मतदाता की संख्या 7, 43370 हैं. अगर महागठबंधन की बात करें तो यहां से राजद के उम्मीदवार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी ने अपने स्थानीय सांसद सुशील कुमार सिंह पर फिर से भरोसा किया है। वहीं, राजद ने जेडीयू छोड़ कर राजद में शामिल हुए पूर्व विधायक अभय कुशवाहा को टिकट दिया है। यह सीट हमेशा सुर्खियों में रही है। इस सीट से 1950 से लेकर अब तक सिर्फ एक ही जाति राजपूत समाज के सांसद जीते हैं। और तो और एक ही परिवार सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के परिवार से नौ बार अलग अलग लोग सांसद रहे हैं। इनमें सात बार सत्येन्द्र नारायण सिन्हा 1950 से 1984 तक लगातार सात बार सांसद रहे जबकि एक बार उनकी बहु श्यामा सिंह व एक बार उनके पुत्र निखिल कुमार यहाँ से सांसद बने है। कुल मिलाकर इस सीट पर 1950 से अबतक 45 साल तक एक ही परिवार का कब्जा रहा है। यहां से वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह भी चार बार सांसद रहे हैं। वे पहली बार 1998 में समता पार्टी की टिकट पर, 2009 में जदयू की टिकट पर तथा 2014 व 2019 में भाजपा की टिकट पर लोकसभा पहुंचे। उनके पिता रामनरेश सिंह भी दो वार 1989 एवं 1991 में संसद रहें है। अदरी नदी के तट पर स्थित इस शहर को पहले नौरंगा कहा जाता था। वहीं 1996 में यहां से सिर्फ एक बार इन दोनो परिवार से अलग जनता दल के विरेन्द्र कुमार सिंह जीत दर्ज करने में सफल रहे हैं। औरंगाबाद की सियासत में कांग्रेस का दबदबा रहा है। यहां की राजनीति बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिंह के परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यहां के पहले सांसद सत्येंद्र नारायण सिंह थे। कांग्रेस पार्टी यहां से नौ बार विजयी रही है। पहली बार 1989 में सत्येंद्र नारायण सिन्हा के परिवार को हार का सामना करना पड़ा था, तब वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह के पिता रामनरेश सिंह ने जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की थी। 2014 में इस सीट पर पहली बार भाजपा का खाता खुला और सुशील कुमार सिंह सांसद बने। 2019 में भी सुशील कुमार सिंह ने यहां से भाजपा को विजय दिलाई। 
औरंगाबाद लोकसभा के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें हैं, कुटुंबा, रफीगंज, गुरुआ, इमामगंज, टिकारी विधानसभा सीटें आती हैं। औरंगाबाद जिला नक्सल प्रभावित है। यहां 1987 से 2000 तक कई नरसंहार हुए। यहां की सिंचाई व्यवस्था अब भी अधूरी है। 1970 के दशक के शुरू सेउत्तर कोयल नहर परियोजना अब तक अधूरी है। हड़ियाही परियोजना का भी यही हाल है। शिक्षा एवं स्वास्थ्य की भी यही हालत है। औरंगाबाद रेल सेवा से अब तक नहीं जुड़ा है।  प्रमुख घटनाएं और मुद्दे 2016 में नक्सलियों से मुठभेड़में सीआरपीएफ के दस जवान शहीद हो गए थे। 2019 में भाजपा विधान पार्षद के घर पर नक्सलियों की हत्या, दर्जन भर वाहन फूंके गए और उनके चाचा की हत्या की गई। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 13,76,323, जिले की कुल जनसंख्या 25,40,073 और साक्षरता दर 70.32 प्रतिशत है। औरंगाबाद की खास बातें औरंगाबाद बिहार का महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। इस लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। प्राचीन काल में औरंगाबाद, मगध राज्य का हिस्सा था। इस क्षेत्र के उमगा में एक वैष्णव मंदिर है। इसे उमगा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां सूर्य देव मंदिर धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। औरंगाबाद के जातीय समीकरण के हिसाब से इस सीट पर राजपूतों की आबादी सर्वाधिक है। इसके अलावा कुशवाहा व यादव सहित अन्य मतदाता भी निर्णायक भूमिका में हैं। औरंगाबाद के जातीय समीकरण के हिसाब से इस सीट पर राजपूतों की आबादी सर्वाधिक है। लगभग 2 .50लाख की संख्या है। इसके अलावा डेढ़ लाख की जनसंख्या के साथ यादव दूसरे नंबर पर हैं। साथ ही मुस्लिमों की आबादी 1.25 लाख है। औरंगाबाद सीट पर कुशवाहा जाति के लोगों की संख्या 1.25 लाख, भूमिहार एक लाख और एससी 2 लाख 75 हजार है।इसके अलावा सबकी नजर अति पिछड़ा वोट पर है जो तीन लाख के करीब है।

ऐसे में इस बार औरंगाबाद 40 लोकसभा सीटों में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ हैं। चर्चा को लालू प्रसाद की नहीं स्ट्रेटजी ने ज्यादा तूल दे दिया हैं। सच तो ये हैं की राजपूत समाज के लिए सबसे मुफीड और एकक्षत्र राज वाले इस क्षेत्र में इस बार का चुनाव कुचब अलग होने वाला हैं। लालू प्रसाद ने इसे M-Y के साथ लव -कुश क ऐगल देकर इतिहास बदलने क प्रयास शुरू कर दिया हैं. देखना दिलचस्पी होगा की इस बार रामलहर पर सवार भाजपा 40 में 40 के दावे को हासिल करने के लिए कौन सा प्लान रचती हैं. वैसे इस बार 2014 और 2019 की तरह लड़ाई आसान नहीं होगी…

विजय मिश्रा "बाबा "