चिराग पासवान का भविष्य तय करेंगी लोकसभा की 5 सीट - विजय मिश्र "बाबा"

चिराग पासवान का भविष्य तय करेंगी लोकसभा की 5 सीट - विजय मिश्र "बाबा"

चिराग पासवान का भविष्य तय करेंगी लोकसभा की 5 सीट - विजय मिश्र "बाबा"

NBL

PATNA बिहार मे राजनीतिक ट्वीस्ट लाने वाले चिराग पासवान चाचा पारस और भाई प्रिंस से हारे या जीते यह चर्चा का विषय हो सकता है। लेकिन चिराग पासवान के राजनीतिक कैरियर के लिए लिए यह चुनौती टर्निंग पॉइंट हो सकती है। परिणाम आने के बाद तय होगी चिराग और उनकी पार्टी  LJPR की हैसियत और उनका कद।

बिहार की राजनीति में चिराग पासवान मोदी के हैट्रिक के लिए काफी मायने रख रहे हैं। लेकिन पशुपति पारस को कमतर समझना एनडीए के साथ-साथ चिराग पासवान के लिए भी घातक हो सकता है। पुरे चुनाव में पारस एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने खडे हैं । एक तरफ मजबूत विपक्ष जो लालू प्रसाद के रूप मे सामने होगा तो वहीं एनडीए के लिए पारस जैसे हिडेन पॉलिटिकल विरोधी पर भी नज़र रखना होगा। इस बात का ध्यान ख़ास कर चिराग को रखना होगा की इस बार परिस्थितियाँ 2019 से बिल्कुल अलग हैं। न तो इस बार रामविलास पासवान हैं न पारस और न ही दिवंगत चाचा रामचंद्र पासवान हैं। भाई प्रिंस राज जो पिता रामचंद्र पासवान की मृत्यु के बाद समस्तीपुर से सांसद बने वो साथ हैं। ऐसे मे लड़ाई लड़ने के लिए कई ऐगल पर चौकन्ना रहना होगा।

2020 चुनाव मे NDA से बाहर हुई लोक जनशक्ति पार्टी चुनाव बाद टूट गई। तब चिराग पासवान बिल्कुल अकेले हो गए। पांच सांसदों के साथ चाचा पारस केंद्र मे मंत्री बने। पर चिराग ने हार नहीं मानी। लगातार बिहार मे सक्रिय रहे। जिसका परिणाम की अंततः चाचा पशुपति कुमार पारस को एनडीए में हाशिये पर ला खड़ा किया । आज पारस अलग-थलग पड़ चुके हैं। लेकिन चिराग के लिए अभी चुनौती बाकी है। भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से कितना उपयोगी हैं। इस बात से भी तुलना होगी की रामविलास पासवान के समर्थक चिराग को उनके मुकाबले कितना सपोर्ट करते हैं।

इस चुनाव में पिता स्व. रामविलास पासवान के नाम का सहारा तो चिराग को जरूर मिलेगा लेकिन उसे किस तरह से लेते और बनाये रखते हैं उस पर भी बहुत कुछ असर देखने को मिलेगा आने वाले समय मे। अभी तो 
चिराग ने भाजपा के लिए कई बार अपनी उपयोगिता का लाभ कई चुनाव मे दिलाया हैं। 
बिहार में लोकसभा चुनाव परिणाम से लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान की राजनीतिक हैसियत तय होगी। 2020 के विधानसभा चुनाव के समय से ही अकेले चल रहे चिराग पासवान  ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ और चतुराई से भाजपा को बार बार साध लेने के किये विवश किया हैं। यही कारण हैं की एनडीए में उन्हें पांच सीटें देने के लिए सभी दलों को फैसला लेना पड़ा ।

अभी तक तो चिराग खुद के लिए जमीन तलाशने मे जुटे थे।  अब चिराग के लिए चुनौती राजग में मिली पांच सीटों पर जीत दर्ज करने की है। पिछले लोकसभा चुनाव में लोजपा की छह सीटों पर जीत हासिल कर शतप्रतिशत रिजल्ट हासिल किया। इस बार पारस अलग हैं, पिता का साया भी नहीं रहा।यदि इस बार चिराग सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज करते हैं तो क़ाबिलियत साबित होगी। हालांकि पारस ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला हैं। यदि चिराग के खिलाफ खुल कर आये तो चुनौती जरूर मिल सकती है। In सब के बाद भी चिराग के साथ उनके पिता का नाम जुड़ा हैं। रामविलास पासवान ने लोजपा की स्थापना 2003 में किया था। 2005 के फरवरी में पहली बार विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर लड़े थे। मैदान मे 178 कैंडिडेट उतारा था जिसमे से 29 उम्मीदवार जीते। 12.62 प्रतिशत वोट मिला। यह लोजपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा हैं। रामविलास पासवान ने ऐसी शर्त रख दि थी की किसी की सरकार नहुँ बनी। उसी साल नवंबर के विस चुनाव हुआ जिसमें लोजपा ने उत्साह मे 203 उम्मीदवारों को मैदान मे उतारा। पर इस बार जीत सिर्फ 10 सीटों पर मिली । वोट प्रतिशत भी घट कर 11.10 प्रतिशत पर आ गया। लोजपा 2010 का विधानसभा चुनाव राजद से मिलकर लड़ी. तो वहीं 2014 लोकसभा 2015 का विधानसभा एवं 2019 का लोकसभा भाजपा के साथ NDA गठबंधन मे लड़ी। पर एक बार फिर 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में चिराग को NDA से बाहर होना पड़ा और खुद को आजमाया। उनके उम्मीदवार 145 सीटों पर लड़े। एक पर जीत हुई। हालांकि इस चुनाव में अपने दम पर 5.66 प्रतिशत वोट हासिल करना चिराग की उपलब्धि थी।

अब सभी की निगाहे चिराग की तरफ देख रही हैं। इस बार का चुनाव चिराग के कैरियर का सबसे अहम् चुनाव होने वाला हैं। 2024 क प्रदर्शन चिराग को हीरो बना सकता हैं। तो वहीँ बिहार को एक बार फिर से रामविलास पासवान क विकल्प मिल सकता हैं.। चिराग जिस दौर मे हैं उसमे कई युवा नेताओं का एक साथ पदार्पण हुआ हैं। चुनौती के साथ टक्कर भी जोरदार हैं। बिहार अपने भविष्य का नेता तलाश रहा है। देखना होगा की 2024 क परिणाम क्या लेकर आता हैं।