तेलंगाना के शख्स का जुनून, 70 एकड़ निजी जमीन में उगा दिया 5 करोड़ पेड़ों का घना जंगल...

तेलंगाना के शख्स का जुनून, 70 एकड़ निजी जमीन में उगा दिया 5 करोड़ पेड़ों का घना जंगल...

देव कुमार पुखराज...

कहते हैं- मजबूत इच्छाशक्ति सम्पन्न इंसान जो ठान लेता है, उसे कर के ही दम लेता है. कभी गया के दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था. ठीक वैसे ही तेलंगाना (Telangana) के सूर्यापेट (Suryapet) वाले दुशरला सत्यनारायणा (Dusharla Satyanarayana  ) ने अपनी खेती वाली पुश्तैनी जमीन को जंगल में बदल दिया. आज की तारीख में सत्यानारायणा के सत्तर एकड़ जमीन में हरा-भरा घना जंगल है, जिसमें वन्य जीव, जलीय जीव और कीट-पतंगों सहित पांच करोड़ से ज्यादा पेड़ हैं. खास बात ये है कि इसके लिए उन्होंने ना किसी संस्था से सहायता ली और ना सरकार से कोई मदद. 

कहां और कैसा है- Man Made Forest-

तेलंगाना के नवसृजित सूर्यापेट जिले में एक गांव है राघवपुरम्. पहले यह नलगोण्डा जिले का हिस्सा हुआ करता है. राघवपुरम् गांव (Raghavapuram village) में ही है दुशरला सत्यनारायण का सत्तर एकड़ में फैला जंगल. हैदराबाद से खम्मम जाने वाली मुख्य सड़क (NH-42) के ठीक बगल में. दूर से देखने पर ये बाकी वनों जैसा ही दिखता है, लेकिन जैसे ही आप करीब जाते हैं और उसकी बारीकियों से परिचित होते हैं, फिर आपको इसकी विशेषताएं प्रभावित किये बिना नहीं रहती. फिर तो आप सत्यनारायणा के मिशन, मेहनत, संकल्पशक्ति और अटूट प्रकृति प्रेम के कायल हुए बिना नहीं रहते. एक मोटे अनुमान के अनुसार जंगल में बड़े-छोटे और पुराने पेड़ों की तादाद पांच करोड़ से भी ज्यादा है. कुछ पेड़ तो अब 50-60 साल पुराने हैं. पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक मोर सहित 32 प्रजाति के पक्षियों का निवास है यहां. जंगल में सांप, बंदर, गिलहरी, बिल्ली, कुत्ते से लेकर जंगली सुअर और हिरणों का बसेरा है.

वनोत्पाद केवल पशु-पक्षियों के लिए-

सत्यनारायणा के जंगल में आम, अमरुद, केला,बेल, जामुन, इमली, अंजीर, बेर, आबनूस जैसे बड़े फलदार वृक्षों के अलावे बड़ी संख्या में शीशम, सागवान और ताड़-खजूर, बांस के पेड़ भी हैं. सुगंधीय और औषधीय महत्व के पेड़-पौधे, लत्ते-पत्ते तो बेशुमार हैं. खास बात तो यह है इस वन का कोई भी उत्पाद इंसानी जरुरतों की पूर्ति के लिए नहीं है. यहां तक कि इसके कर्ता-धर्ता सत्यनारायणा भी जंगल का कुछ भी अपने हिस्से नहीं रखते. जंगल के एक पत्ते का भी व्यवसायिक इस्तेमाल कभी भी नहीं किया. वहां के फल तोड़े नहीं जाते, उसे केवल जंगल में रहने वाले जीव-जंतु और पक्षी खाते हैं. इतना ही नहीं बगल के खेत में भी वैसे ही अनाज उपजाए जाते हैं, जो पक्षियों की भूख मिटा सकें, ताकि वे जंगल में आश्रय ले सकें.

सत्यनारायणा गर्व से बताते हैं- सभी फल-फूल वन में रहने वाले पशु-पक्षियों के लिए ही हैं. चाहे वे खाएं या पेड़ से गिरकर सुख जाए, हम उसका इस्तेमाल किसी रुप में नहीं करते. यहां तक की पेड़ से टूटी डाली भी बाहर नहीं निकाली जाती. सत्यनारायणा कहते हैं कि पशु-पक्षी ही जंगल के असली मालिक हैं, हम तो बस इनके चौकीदार हैं. इस जंगल में अभी तक ना गेट है और ना चाहरदीवारी. कोई सुरक्षा प्रहरी भी नहीं. यहां तक की कोई साईनबोर्ड भी कहीं नहीं दिखता. 

Visitors No Entry-

दुशरला सत्यनारायणा के जंगल में आमजन को कौन कहे, सैलानियों तक की इंट्री बैन है. वे जोर देकर कहते हैं- ‘Visitors are Not welcome’. हां, यदि आप वास्तव में जंगल से प्रेम करते हैं, प्रकृति को देखना और कुंछ सीखना चाहते हैं, तो आपका जरुर स्वागत रहेगा. यहीं वजह है कि हैदराबाद से टीम संघमित्रा से जुड़े स्वयंसेवकों को जब जंगल देखने की ललक हुई, तो नलगोंडा वाले जाने-माने पर्यावरणविद् सुरेश गुप्ता को ‘सेतु’ बनना पड़ा. उन्होंने जंगल जाने पर ना केवल वृक्षों की सामूहिक पूजा-प्रार्थना करायी, बल्कि पेड़ों में रक्षा सूत्र बांधकर पर्यावरण रक्षा का संकल्प दोहराया. साथ-साथ जंगल के विभिन्न स्थानों पर मौजूद प्राचीन पत्थर की मूर्तियों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना का कार्य सुसम्पन्न कराया.

जंगल में है और भी बहुत कुछ-

राघवपुरम् का ये निजी जंगल एक व्यक्ति विशेष के संकल्प और परिश्रम का सार्थक उपादान है. कह सकते हैं कि दुशरला सत्यानारायण की साढ़े छह दशक की अहर्निश तपस्या इस रुप में फलीभूत हुई है. उन्होंने बड़ी लगन, मेहनत और श्रद्धा से पुरखों से मिली जमीन को अनूठे प्राकृतिक उपहारों से संवारा है. जंगल में पेड़-पौधे और वन्य जीव बहुतायत में हैं. उनकी प्यास बुझाने के लिए सत्यनारायणा ने आठ छोटे-बड़े तालाब खोद रखे हैं. इनमें चार ऐसे हैं, जिनमें सालो भर पानी नहीं सूखता. तालाबों को प्राकृतिक स्त्रोत से पानी मिलता रहे, इसके लिए चेक डैम बने हैं. एक बिजली पर चलने वाला नलकूप भी है. एक तालाब ऐसा भी है, जिसमें मैरुन कलर के विलुप्त प्रजाति वाले कमल खिलते हैं. सत्यनारायणा बताते हैं कि 30 साल पहले हैदराबाद के कृषि विश्वविद्यालय परिसर से उन्होंने कमल लाकर यहां लगाया था. आज पूरे तेलंगाना में केवल यहीं पर इस प्रजाति के कमल मौजूद है.

वे कहते हैं पूरे सीजन में केवल एक बार अपनी आराध्य श्रीशैलम स्थित भ्रमरम्बा माता ( Sri Bhramaramba Mallikarjuna Temple) को अर्पित करने हेतु कमल भेजते हैं. हंसते हुए कहते हैं कि वहीं पर मौजूद महादेव श्रीमल्लिकार्जुन स्वामी को भी फूल नहीं देता. जंगल के बीचों-बीच बड़े और धने पेड़ों की छांव तले एक झोंपड़ी भी है. काफी दिनों तक सत्यनारायणा का यह निवास स्थान था. अब वे उसमें नहीं रहते. कहते हैं- ये कुटिया मेरी साधना स्थली रही है, यहीं बैठकर वे धरती माता और मां भ्रमरम्बा का ध्यान-पूजन करते थे. अब उस कुटिया में चमगादड़ों, पक्षियों और सांपों का बसेरा है. उसका स्वरुप अब बेहद डरावना हो गया है. जंगल घूमाते समय वे दिखाते हैं- पत्थरों के स्वयंभू 9 शिवलिंग और श्रीलक्ष्मीनरसिंह भगवान के पत्थर पर अंकित पदचिह्न.  

पहले छोड़ी बैंक की नौकरी, फिर छूटा परिवार-

वॉटरमैन सत्यानारायणा ने हैदराबाद स्थित कृषि विश्वविद्यालय से 1972 में बी.एससी किया. फिर सेन्ट्रल बैंक में फिल्ड ऑफिसर रहे. लेकिन बगीचे की देखभाल में आ रही परेशानी को देख 1986 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरा समय बागवानी में लगाने लगे. देशभर से विभिन्न प्रजाति के पेड़-पौधों को लाकर बगीचे में लगाया. नल्ला-मल्ला के जंगल को छान मारा. पड़ोस के राज्यों में भी गये और जो भी खास दिखा, उसे संजोकर अपने बाड़े में रोप दिया. धीरे- धीरे मेहनत रंग लायी और अब जंगल का संसार आबाद हो गया. लेकिन उनकी सनक का परिणाम ये हुआ कि घर वाले दूर हो गये. पत्नी दोनों बच्चों के लेकर मायके रहने लगी. उनका डॉक्टर बेटा और बेटी अब अमेरिका में रहते हैं. वे कहते हैं- इस जंगल में किसी का हिस्सा नहीं है. यहां तक कि बेटे-पत्नी को भी वे इसका मालिकाना हक देने वाले नहीं है. उनके निधन के बाद जंगल का क्या होगा, इस सवाल पर वे कहते हैं- पंचभूत से बना यह शरीर और संसार है. वहीं इसकी भी रक्षा करेगा.  

संघर्षपूर्ण रहा है सत्यानारायणा का जीवन- 

राघवपुरम् के जमींदार परिवार में जन्में सत्यानारायणा के पिता पटवारी थे. निजाम के शासन काल तक उनके पास 300 एकड़ जमीन थी। आजादी के बाद 70 एकड़ जमीन बची रही, जो खेती लायक कम चारागाह अधिक थी. सत्यानारायणा पर चार साल की छोटी उम्र से ही पेड़ लगाने का शौक चढ़ा, जो निर्वाध रुप से जारी है. एक वर्ष बाद वे जीवन के 70 वें साल में प्रवेश करेंगे. उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी ऊर्जा और ठसक कायम है .पिछले 80 के दशक से वे नलगोंडा जिले में पानी की किल्लत और फ्लोराइड के दुष्परिणामों को लेकर संघर्ष करते रहे. जल साधना समिति के बैनर तले कई आंदोलन किये. पानी के सवाल पर शासन और सरकार का ध्यान खींचने के लिए 1996 के लोकसभा चुनाव में चार सौ अस्सी किसानों से नामांकन पत्र दाखिल करा दिया.

ग्रामीणों के वॉटरमैन, घरवालों के लिए सनकी- 

नलगोंडा के लोग सत्यानारायणा को ‘जंगल मैन’ और ‘नेचर लवर’ मानते हैं. अधिकांश लोग उनको ‘वॉटर मैन ऑफ तेलंगाना’ कहते हैं. लेकिन उनके परिजन और रिश्तेदार सत्यानारायणा को ‘सनकी’ समझते हैं. वे कहते हैं मुख्य सड़क के किनारे जिसके पास 70 एकड़ जमीन हो, करोड़ों पेड़-पौधों से युक्त बगीचा हो, वो अपने जुनून के लिए फकीरों जैसा जीवन जिए, यह उचित नहीं. ये सिरफिरे की निशानी है. लेकिन टीम संघमित्रा के संयोजक और वंदेमातरम फाउंडेशन के संस्थापक माधव रेड्डी इस उपमा को बहुत उचित नहीं मानते। माधव रेड्डी कहते हैं- “आज के जमाने में कोई इंसान प्रकृति की रक्षा और जीव जंतुओं के संरक्षण में अपनी सारी ऊर्जा और कमाई झोंक दे, परिवार से नाता तोड़कर जंगल को ही अपना घर-परिवार बना ले, हजारों करोड़ की संपत्ति का मालिक रहते हुए उसका चौकीदार बन जाए, सुसंस्कृत जीवनशैली त्यागकर फकीरों जैसा रहने लगे, तो भला बताइए परिवार वाले उसको ऐसी उपमा क्य़ों ना दें. लेकिन वर्तमान समय में त्याग और समर्पण का ऐसा उदाहरण भी विरले ही मिलेगा. कोई बेहद जुनूनी आदमी ही ऐसी मिशाल पेश कर सकता है. दुशरला सत्यानारायणा की कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी”. 
इति-