आरा : आर के सिंह के फेसबुक पोस्ट के बाद घमासान मच गया है। इस सियासी घमासान के केंद्र में हैं बिहार की दो पावरफुल मानी जाने वाली जातियां भूमिहार और राजपूत। साथ ही केंद्र के तीसरे हिस्से में कोइरी जाति भी है। इस पोस्ट के बाद बतकही शुरू हो गई है। कुछ लोगों का कहना है कि आर के सिंह भूमिहार राजपूत की एकता को तोड़ना चाहते हैं।
भोजपुर जिले के नगरी गांव के रहने वाले हैं अलख पांडेय। वो आरा में वकालत करते हैं। छठ पूजा के लिए गांव जा रहे हैं। आरा-सासाराम पैसेंजर ट्रेन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही है। इसी बीच वो कहते हैं कि 'विधानसभा चुनाव के समय राजपूत-भूमिहार की एकता तोड़ कर एनडीए को नुकसान पहुंचाने कोशिश हो रही है। राजनीतिक बनवास झेलने के कारण आर के सिंह बौखला गये हैं और एनडीए को डैमेज करना चाहते हैं।'
आरा के पूर्व सांसद राज कुमार सिंह (आर के सिंह) राजपूत-भूमिहार की एकता को तोड़ना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के कारण राजपूत-कोइरी की चुनावी दोस्ती टूटी तो एनडीए को भारी नुकसान हुआ।
अलख पांडेय के बगल में बैठे सज्जनउनसे पूछते हैं, 'माफ कीजिए ये पूछना नहीं चाहिए लेकिन पूछना पड़ रहा है, क्या आप भूमिहार हैं ? अलख पांडेय कहते हैं, हां ! क्या कोई एतराज हैं?' सवाल पूछ रहे सज्जन कहते हैं 'नहीं ! नहीं ! आपने सीधे राजपूत-भूमिहार का सवाल उठा दिया ? ऐसा क्या कह दिया? अलख पांडेय कहते हैं, मेरा गांव भूमिहार बहुल है। हम सभी लोग 2014 से ही राजकुमार सिंह को वोट करते आ रहे हैं। इस बार भी किया था। लेकिन हार गये। वे अपनी चाल से हार गये। मंत्री बन गये तो राजा समझने लगे। लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया। बोली-बचन में हमेशा कड़वाहट। आरा लोकसभा क्षेत्र में भूमिहारों की आबादी इतनी तो जरूर है कि वे किसी को हरा दें। भूमिहारों का वोट लेने के लिए वे गांव-गांव घूमते थे और अब भूमिहार के खिलाफ ही अपशब्द (खदेड़ दिया) का इस्तेमाल कर रहे हैं।'
आखिर हुआ क्या? इस सवाल पर अलख पांडेय कहते हैं, आर के सिंह ने मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह (भूमिहार) को अपराधी बता दिया लेकिन अपनी जाति के आनंद मोहन सिंह के लिए कुछ नहीं कहा। वे कहते हैं आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को वोट मत कीजिए। अगर यही बात है तो आनंद मोहन के पुत्र चेतन आनंद, जो नबीनगर से खड़े हैं, क्या उनको वोट करना चाहिए? अगर अनंत सिंह पर गंभीर आरोप दर्ज हैं तो क्या आनंद मोहन पर नहीं है? आनंद मोहन को तो उम्र कैद की सजा मिली थी, बाद में जेल से निकले। आर के सिंह ने उनके बारे में क्यों नहीं कुछ कहा? मतलब भूमिहार उम्मीदवार अपराधी नजर आता है और अपनी जात का उम्मीदवार साधु हो गया।'
अनंत सिंह डॉन हैं तो क्या आनंद मोहन साधु हैं? एक समय भूमिहार-राजपूतों की एकता से ही हिल गई थी लालू सरकार, अब आरके सिंह इसमें फूट डालना चाहते हैं क्या?
फिर एक सवाल उछलता है, तो क्या भोजपुर, रोहतास, बक्सर में फिर एनडीए की खटिया खड़ी हो जाएगी? अलख पांडेय कहते हैं, आरा से भाजपा ने राजपूत जाति के संजय टाइगर को मैदान में उतारा है। ये बात जगजाहिर है कि भूमिहार भाजपा को वोट करते हैं। लेकिन आर के सिंह के बयान के बाद अब भूमिहारों में नाराजगी है। अगर इसको ठीक नहीं किया गया तो कुछ भी हो सकता है। 1994 में लालू यादव को हराने के लिए पहली बार राजपूत-भूमिहार और कुर्मी एक हुए थे।'
अलख थोड़ा रुक कर कहते हैं, 1994 में वैशाली लोकसभा का उप चुनाव था। इस चुनाव में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद लालू यादव की प्रत्याशी किशोरी सिन्हा के खिलाफ खड़ी थीं। किशोर सिन्हा भी राजपूत थीं और ऊपर से लालू यादव की ताकत भी जुड़ी हुई थी। उस समय मंडल आरक्षण के कारण अगड़ों-पिछड़ों में भयंकर लड़ाई चल रही थी। राजपूत-भूमिहार अपनी वर्षों पुरानी दुश्मनी को भुला कर पहली बार एक हुए। लालू यादव को हराना सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया। इस बीच नीतीश कुमार का भी लालू यादव से झगड़ा शुरू हो गया। इससे कुर्मी भी लालू यादव से खफा हो गये। उपचुनाव हुआ तो राजपूत-भूमिहार और कुर्मी की एकता ने चमत्कार कर दिया। शक्तिशाली लालू यादव की उम्मीदवार किशोरी सिन्हा हार गयीं। लवली आनंद जीत गयीं। यहीं से राजपूत-भूमिहार की एकता का नया अध्याय शुरू हुआ।
अलख पांडेय ने अपनी बार पूरी की तो एक तीसरे यात्री कहा, 'ऐसा नहीं है, विधानसभा चुनाव, लोकसभा की तरह एकतरफा नहीं होगा। कड़ा मुकाबला होगा। इस पर अलख पांडेय ने कहा, आर के सिंह ने इसकी कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है। उन्होंने केवल अनंत सिंह ही नहीं बल्कि जगदीशपुर से जदयू के प्रत्याशी श्री भगवान सिंह कुशवाहा के खिलाफ भी बयान दिया है। भोजपुर में कोइरी जाति (कुशवाहा) डिसाइडिंग फैक्टर है। काराकाट से जीते भाकपा माले के सांसद राजाराम सिंह कुशवाहा जाति के हैं। डुमरांव से भाकपा माले के विधायक अजीत सिंह भी कुशवाहा जाति के हैं। भोजपुर-रोहतास में कुशवाहा जाति, भाकपा माले की वोटर मानी जाती है। जदयू के श्रीभगवान सिंह भी कुशवाहा जाति के हैं। अगर आर के सिंह के बयान से कुशवाहा जाति नाराज हुई तो एनडीए को भारी नुकसान हो सकता है।'
इस बतकही में समय का पता ही नहीं चला। चुनावी परिचर्चा अब बंद हो गयी क्यों कि आरा-सासाराम पैसेंजर ट्रेन नगरी स्टेशन पहुंचने वाली थी। अलख पांडेय अपना सामान समेटने लगे। स्टेशन से उतरे तो आहर के किनारे बन रहे अर्घ्य घाट से छठ पूजा के गीत सुनायी देने लगे।